शाजापुर, मध्यप्रदेश: राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक मंगलवार को आयोजित की जाने वाली मुख्यमंत्री जनसुनवाई योजना का उद्देश्य आम जनता को राहत पहुंचाना और उनकी समस्याओं का शीघ्र समाधान करना है। इस योजना के तहत प्रदेश भर से नागरिक जिलों में पहुंचते हैं, लेकिन शाजापुर जिले में इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है।
सुंदरसी निवासी सुमित अपने साथ लाए थे अपनी 110 वर्षीय दादी को, जिनकी आंखों में अब भी एक उम्मीद बाकी थी। लेकिन यह उम्मीद भी अब अंतिम सांसें गिन रही है। सुमित का आरोप है कि उनके भाई द्वारा उनकी दादी के साथ लगातार मारपीट और प्रताड़ना की जा रही है। मामला केवल पारिवारिक नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक लापरवाही का भी जीता-जागता उदाहरण बन गया है।
पुलिस भी नहीं दे रही सुनवाई
सुमित ने बताया कि उन्होंने इस मामले की शिकायत कई बार स्थानीय सुंदरसी थाना में की, लेकिन हर बार उन्हें वहां से अनदेखी और निराशा ही मिली। थाने के अधिकारियों द्वारा न तो एफआईआर दर्ज की गई और न ही कोई कार्रवाई की गई।
“हम बार-बार थाने जा चुके हैं। हर बार हमें टाल दिया जाता है। कह दिया जाता है कि आपसी मामला है, सुलझा लो। लेकिन जब घर में ही कोई सुनवाई नहीं कर रहा और पुलिस भी चुप है, तो हम क्या करें?” सुमित ने जनसुनवाई में अधिकारियों के सामने कहा।
जनसुनवाई में भी नहीं हो रही सुनवाई
यह पहली बार नहीं है कि सुमित और उनकी दादी जनसुनवाई में पहुंचे हों। वे लगातार कई महीनों से अपनी शिकायतें लेकर जिला मुख्यालय की जनसुनवाई में शामिल हो रहे हैं, लेकिन आज तक उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं निकला।
“हमारी दादी इतनी बूढ़ी हो चुकी हैं कि अब चलना भी मुश्किल है। लेकिन हम फिर भी जनसुनवाई में उन्हें लेकर आते हैं, ताकि कोई अफसर हमारी सुन ले। लेकिन हर बार बस एक आवेदन लेकर हमें लौटा दिया जाता है,” सुमित ने रोते हुए कहा।
“आज आखिरी बार आए हैं” – बुजुर्ग की चेतावनी
सबसे भावुक क्षण तब आया जब 110 वर्षीय महिला ने जनसुनवाई के मंच पर ही कह दिया कि अगर इस बार भी उनकी बात नहीं सुनी गई, तो वे आत्महत्या कर लेंगी।
“हम थक चुके हैं। शरीर भी साथ नहीं दे रहा। अगर इस बार भी कोई समाधान नहीं हुआ, तो हम जहर खा लेंगे। यही आखिरी उम्मीद थी,” उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा।
समाजसेवी का प्रशासन पर हमला
इस पूरे मामले को लेकर समाजसेवी राधेश्याम मालवीय ने प्रशासन पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह कोई पहली घटना नहीं है। जिले में जनसुनवाई बस एक औपचारिकता बनकर रह गई है।
“छोटी-छोटी समस्याओं को भी अधिकारी हल नहीं कर पा रहे। जनता बार-बार चक्कर लगा रही है और फिर भी सुनवाई नहीं हो रही। ऐसी व्यवस्था में बुजुर्गों और पीड़ितों को केवल दुख और अपमान मिल रहा है।”
जनसुनवाई पर सवाल
यह मामला अब सीधे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की जनसुनवाई प्रणाली पर सवाल खड़े करता है। जिस योजना को सरकार जन-जागरण और जवाबदेही का प्रतीक बता रही है, वह वास्तव में क्या आम लोगों को राहत दे रही है या सिर्फ कागजों में समाधान हो रहा है?
मुख्यमंत्री द्वारा कई बार कहा गया है कि “हर शिकायत का समाधान सुनिश्चित किया जाएगा”, लेकिन शाजापुर जैसे जिलों में यह दावा खोखला साबित हो रहा है।
जनसुनवाई की व्यवस्था या दिखावा?
सवाल यह उठता है कि जब एक 110 साल की महिला को अपनी बात कहने के लिए बार-बार अपमान और उपेक्षा झेलनी पड़ रही है, तो आम जनता को किस तरह की न्याय प्रणाली मिल रही है?
क्या जनसुनवाई केवल कागज पर हस्ताक्षर लेकर फाइल आगे बढ़ा देने का माध्यम बन गई है?
क्या अधिकारी जनता के प्रति जवाबदेह हैं या सिर्फ शासन के आदेशों का पालन करने तक सीमित हैं?
अंतिम उम्मीदें और जिम्मेदारी
सुमित की दादी का मामला अब सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि प्रशासनिक निष्क्रियता और सामाजिक संवेदनहीनता का प्रतीक बन चुका है। यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो न सिर्फ एक जान खतरे में पड़ेगी, बल्कि पूरी शासन प्रणाली की साख भी सवालों के घेरे में आ जाएगी।