Ratlam News: मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां रावण की नाक काटकर उसका अंत दशहरा के 6 महीने पहले किया जाता है। इस अनोखी परपंरा को हिन्दू-मुस्लिम दोनों मिलकर निभाते हैं। चैत्र नवरात्रि में रावण के अंत की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। आइए जानते हैं इस परंपरा के बारे में…
कहां होती है ये परंपरा
रतलाम से करीब 55 किलोमीटर दूर चिकलाना गांव में ग्रामीण चैत्र नवरात्रि के दसवें दिन भव्य समारोह आयोजित करते हैं। फिर भाले से रावण की नाक काटकर उसका अंत करते हैं। यहां शारदीय नवरात्रि के दशहरे पर रावण दहन नहीं होता है। भव्य समारोह के बाद राम और रावण की सेना कार्यक्रम स्थल पर पहुंचती है। इस सेना में हनुमान, और बाकी लोग भी होते हैं। यहां दोनों सेना के बीच वाक युद्ध भी होता है, जिसके बाद रावण का अंत किया जाता है। और लंका दहन भी होता है।
नाक काटकर रावण को किया जाता है बदनाम
आपको बता दें कि यहां रहने वाले लोगों से जब इसके पीछे की वजह पूछी गई तो वे बताते हैं कि प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है बदनामी होना, लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा के पीछे यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिये उसके अहंकार को नष्ट करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। लोग यह भी बताते हैं कि रावण ने माता सीता का हरण किया था, इसी अपमान का बदला लेने के लिए अब यहां लोग रावण की नाक काटकर उसका अपमान करते हैं।
पुरखों के जमाने से निभाई जा रही परंपरा
चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े परिवार का कहना है कि चैत्र नवरात्रि की यह परंपरा हमारे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है, इसलिए हम भी इसी का पालन कर रहे हैं। परंपरा के मुताबिक ही गांव के प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से पहले रावण के पुतले की नाक पर वार करता है, यानी सांकेतिक रूप से उसकी नाक काट दी जाती है। शारदीय नवरात्र के बाद पड़ने वाले दशहरे पर हमारे गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। Read More…Camel Smokes Cigarette: क्या आपने किसी ऊंट को सिगरेट पीते देखा है? वायरल Video देख नहीं कर पाएंगे यकीन
15 फीट ऊंची रावण की दस सिरों वाली स्थायी मूर्ति
गांव के लोग बताते हैं कि पहले हमारे गांव को ये परंपरा औरों से अलग करती है। पहले हर साल रावण का पुतला बनाया जाता था, लेकिन पांच-छह साल पहले यहां 15 फीट ऊंची रावण की दस सिरों वाली स्थायी मूर्ति बनवा दी गई है। गांव में जिस जगह रावण की यह मूर्ति स्थित है, उसे दशहरा मैदान घोषित कर दिया गया है। यहीं हर साल परंपरा का निर्वाह किया जाता है।