(RBI) ने लगातार 10वीं बार ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया है। RBI ने ब्याज दरों को 6.5% पर जस का तस रखा है। RBI ने आखिरी बार फरवरी 2023 में दरें 0.25% बढ़ाकर 6.5% की थीं।
RBI की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी ने Repo Rate में एक बार फिर कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया है। यह लगातार दसवां मौका है जब एमपीसी ने नीतिगत दरों को यथावत रखा है। एमपीसी की तीन दिन तक चली बैठक के बाद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इसमें लिए गए फैसलों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि रेपो रेट को एक बार फिर 6.5% पर बरकरार रखने का फैसला लिया गया है। दास ने कहा कि समिति के 6 में से पांच सदस्यों ने रेपो रेट को यथावत रखने के पक्ष में वोट दिया। रेपो रेट के यथावत रहने का मतलब है कि आपके लोन की किस्त में कोई बदलाव नहीं होगा। रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को लोन देता है। इसके कम होने से आपके होम लोन, पर्सनल लोन और कार लोन की किस्त कम होती है।

आरबीआई ने रेपो रेट आखिरी बार बदलाव पिछले साल फरवरी में किया था। तब इसे 0.25% बढ़ाकर 6.5% किया गया था।
रेपो रेट का महत्व
Repo Rate के बढ़ने से व्यावसायिक बैंक भी बैंक दर बढ़ा देते हैं और इसका आम ग्राहकों पर असर पड़ता है. रेपो रेट के बढ़ने से ग्राहकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाता है. अगर उन्होंने होम लोन या कार लोन या कोई और लोन लिया है तो उनकी EMI या कर्ज अदायगी की किश्त बढ़ जाती है. इसी तरह से रेपो रेट के कम होने से EMI कम हो सकती है और ग्राहकों को राहत मिलती है.
अर्थव्यवस्था के लिहाज से इसका महत्व यह है कि यदि ग्राहकों की किश्त कम होती है तो उनके पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे रहेंगे. इससे अर्थव्यवस्था में तेजी आ सकती है. मगर ग्राहकों के हाथ में बहुत ज्यादा पैसे रहने से महंगाई भी बढ़ती है. इसलिए महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक समय-समय पर रेपो रेट को बढ़ाने का फैसला करते हैं.
RBI के फैसले के बाद बाजार में आई तेजी
आरबीआई के फैसले पर शेयर बाजार से पॉजिटिव रिस्पांस देखने को मिला है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक सेंसेक्स 500 अंक उछल गया। वहीं, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 150 अंक उछल गया।
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने बताया कि मौद्रिक नीति समिति ने वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि घरेलू ग्रोथ लगातार अपना मोमेंटम बनाए हुए है। उन्होंने कहा, ‘साथ ही ग्लोबल इकोनॉमी अपना लचीलापन बनाए हुए है। हालांकि, भू-राजनीतिक तनाव, फाइनेंशियल मार्केट में उतार-चढ़ाव और बढ़े हुए सरकारी कर्ज के चलते डाउनसाइड रिस्क बना हुआ है। वहीं, सकारात्मक बात यह है कि वर्ल्ड ट्रेड इंप्रूवमेंट के संकेत दिखा रहा है।’