कोलकाता, 29 मई 2025 – पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक विवादित बयान देकर नया राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया है। मंगलवार को कोलकाता में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने प्रधानमंत्री मोदी की महिलाओं को लेकर की गई एक टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “वो (प्रधानमंत्री) ऐसे बात कर रहे हैं, जैसे हर महिला के पति वही हों।”
यह टिप्पणी उस वक्त आई जब हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली में कहा था कि “हमारी सरकार ने बहनों के सिंदूर की रक्षा की है।” इस पर तंज कसते हुए ममता बनर्जी ने कहा, “महिलाओं के सिंदूर और साड़ी का ठेका क्या अब बीजेपी ने ले लिया है?” उन्होंने इसे भाजपा की राजनीति का “स्त्रीविरोधी चेहरा” बताते हुए कहा कि भाजपा महिलाओं की स्वतंत्रता और गरिमा को समझने में पूरी तरह असफल रही है।
ममता का तंज: “घर-घर सिंदूर पहुंचाएगी सरकार?”
ममता ने अपने भाषण में कटाक्ष करते हुए कहा, “अब मोदी सरकार घर-घर सिंदूर पहुंचाएगी क्या? राशन की जगह अब क्या महिलाओं को सिंदूर और चूड़ी बांटी जाएगी?” उन्होंने इस बयान को महिलाओं के व्यक्तिगत अधिकारों में दखल देने वाला बताया।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार महिलाओं की असल समस्याओं से ध्यान भटकाकर सिर्फ सांस्कृतिक प्रतीकों पर राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा, “महिलाओं की सुरक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य—इन पर बात नहीं होगी। अब सिंदूर, साड़ी और चूड़ियों से चुनाव जीते जाएंगे क्या?”
भाजपा का पलटवार
भाजपा ने ममता बनर्जी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, “ममता बनर्जी ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अपमान किया है। प्रधानमंत्री महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा की बात कर रहे हैं, और ममता दीदी उस पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर रही हैं। इससे तृणमूल कांग्रेस की मानसिकता सामने आ गई है।”
भाजपा नेताओं ने यह भी दावा किया कि ममता बनर्जी के बयान से यह साबित होता है कि वह महिला मतदाताओं की भावनाओं को नजरअंदाज कर रही हैं।
विपक्षी रणनीति या रणनीतिक भूल?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी का यह बयान एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है ताकि भाजपा की सांस्कृतिक राजनीति को चुनौती दी जा सके। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस तरह की तीखी भाषा ममता के लिए उल्टा असर डाल सकती है, खासकर ग्रामीण और परंपरागत महिला मतदाताओं के बीच।