अशोकनगर, 1 जून 2025 — जब प्रशासनिक अधिकारी किसी काम को केवल औपचारिकता न मानकर उसे अपने व्यक्तिगत कर्तव्य की तरह निभाएं, तो विकास की राह न केवल तेज़ होती है बल्कि प्रेरणादायक भी बन जाती है। ऐसा ही उदाहरण पेश किया है अशोकनगर के कलेक्टर आदित्य सिंह ने, जिन्होंने रविवार तड़के सुबह 5 बजे से पहले 65 किलोमीटर की साइकिल यात्रा कर मुंगावली क्षेत्र के दौलतपुर गांव में स्थित अमृत सरोवर का निरीक्षण किया।
इस साइकिल यात्रा में उनके साथ एक और अधिकारी शामिल रहे। दोनों ने पथरीले और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर करीब तीन घंटे तक लगातार साइकिल चलाई और दौलतपुर गांव पहुंचे। वहां पहुंचते ही कलेक्टर ने न केवल निरीक्षण किया, बल्कि श्रमदान कर तालाब की खुदाई में भी भाग लिया। यह दृश्य ग्रामीणों के लिए प्रेरणास्पद रहा, जिन्होंने भारी संख्या में उपस्थित होकर इस कार्य में सहभागिता दिखाई।

अधिकारियों में मची हलचल, जनता में उमड़ा उत्साह
कलेक्टर के दौलतपुर पहुंचने की सूचना मिलते ही जनपद पंचायत के सीईओ, तहसीलदार, जन अभियान परिषद की टीम और अन्य विभागीय अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए। जल्द ही यह एक छोटे से प्रशासनिक निरीक्षण की जगह जनभागीदारी का बड़ा उदाहरण बन गया। करीब 100 से अधिक ग्रामीण वहां एकत्रित हुए और तालाब खुदाई के इस अभियान में शामिल हो गए।
कलेक्टर आदित्य सिंह ने न केवल निरीक्षण तक अपनी भूमिका सीमित रखी, बल्कि खुद फावड़ा उठाकर तालाब की खुदाई में लगे। उन्होंने ग्रामीणों से बात की, उनकी समस्याएं सुनीं और विकास कार्यों को लेकर उनसे फीडबैक भी लिया।
हंसारी गांव में भी किया श्रमदान
दौलतपुर से आगे कलेक्टर चंदेरी क्षेत्र के हंसारी गांव पहुंचे, जहां उन्होंने पड़वा (छोटा हाथ से चलने वाला खुदाई का उपकरण) से मिट्टी खोदी और तालाब गहरीकरण कार्य में सहभागिता की। उन्होंने वहां मौजूद ग्रामीणों को भी जल संरक्षण और सामूहिक श्रमदान के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि “सरकारी योजनाएं तभी सफल होंगी जब उनमें जनता की भागीदारी होगी। अमृत सरोवर जैसी योजनाएं केवल निर्माण कार्य नहीं, बल्कि सामुदायिक चेतना की नींव होती हैं।”
प्रशासनिक कार्यशैली में नई सोच
कलेक्टर आदित्य सिंह का यह दौरा उनके काम करने के अनोखे अंदाज़ को दर्शाता है। पदभार संभालने के बाद से ही वे जिले की विकास योजनाओं की स्थिति को नज़दीक से देखने के लिए फील्ड विज़िट कर रहे हैं। लेकिन उनका यह निरीक्षण सामान्य नहीं था। जब एक कलेक्टर बिना किसी तामझाम के साइकिल से गांवों में पहुंचता है, तो न केवल वह अधिकारियों को सतर्क करता है, बल्कि ग्रामीणों को यह विश्वास भी देता है कि प्रशासन उनके साथ है।
उनकी यह कार्यशैली “फील्ड में जाकर समझो और काम करो” की नीति को दर्शाती है। उनका यह मानना है कि वातानुकूलित दफ्तरों में बैठकर ग्राउंड रियलिटी नहीं समझी जा सकती। इसलिए वे लगातार क्षेत्रीय भ्रमण कर रहे हैं, ग्रामीणों से सीधे संवाद कर रहे हैं और योजनाओं की प्रगति की जमीनी हकीकत जान रहे हैं।
पर्यावरण और जनसहभागिता को प्रोत्साहन
कलेक्टर द्वारा की गई यह साइकिल यात्रा केवल निरीक्षण नहीं थी, बल्कि एक बड़ा प्रतीकात्मक संदेश भी थी। उन्होंने यह दिखाया कि पर्यावरण के अनुकूल साधनों का उपयोग कर भी प्रशासनिक कार्य किए जा सकते हैं। साइकिल चलाकर वे ना केवल ऊर्जा संरक्षण का संदेश दे रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति जागरूकता भी फैला रहे हैं।
श्रमदान कर उन्होंने यह भी बताया कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता। जब एक शीर्ष अधिकारी फावड़ा लेकर मिट्टी खोद सकता है, तो समाज के हर वर्ग को भी जल संरक्षण और सामुदायिक कार्यों में भाग लेना चाहिए।
गांवों में जागरूकता और प्रेरणा
कलेक्टर की यह यात्रा ग्रामीणों के लिए प्रेरणा बन गई। कई ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने पहली बार किसी अधिकारी को खुद श्रमदान करते देखा है। इससे उनमें प्रशासन के प्रति विश्वास बढ़ा है और उन्हें लगा कि सरकारी योजनाएं केवल कागज़ों तक सीमित नहीं हैं।
युवा वर्ग भी इस यात्रा से प्रभावित हुआ। साइकिल यात्रा, श्रमदान और संवाद की त्रिपाठी नीति ने यह सिद्ध कर दिया कि विकास केवल बजट और निर्माण तक सीमित नहीं, बल्कि भागीदारी और जागरूकता की मांग करता है।