9 साल से अटकी प्रमोशन को लेकर अधिकारी-कर्मचारी संगठन एमपी सरकार से नाराज हैं। आपको बता दें कर्मचारी संगठन सरकार के इस फैसले के विरोध में कोर्ट जा सकते हैं। सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था ने सरकार के फैसले को सामान्य वर्ग विरोधी बताया है।
नौ साल से रुकी पदोन्नति प्रक्रिया
मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति प्रक्रिया पिछले नौ वर्षों से ठप पड़ी है। 2016 में हाईकोर्ट ने लोकसेवा पदोन्नति नियम 2002 में आरक्षण संबंधी प्रावधानों को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद से पदोन्नतियां बंद हो गईं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था, लेकिन इसके बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
समाधान की दिशा में एक प्रयास
सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गोरेकेला से 2016 में नया पदोन्नति नियम तैयार कराया था। इस ड्राफ्ट में आरक्षण का प्रावधान भी था, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि सरकार ने जानबूझकर इस ड्राफ्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
अस्थायी समाधान या स्थायी विकल्प?
हाल ही में सरकार ने समयमान वेतनमान को पदोन्नति का विकल्प माना है। इस योजना के तहत, कर्मचारियों को पदोन्नति के बिना उच्च वेतनमान दिया जाता है। हालांकि, यह व्यवस्था आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों के लिए न्यायसंगत नहीं मानी जा रही है, क्योंकि इसमें आरक्षण का प्रावधान नहीं है।
कर्मचारी संगठनों का विरोध और कोर्ट जाने की तैयारी
मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है। संघ के प्रांतीय महासचिव ने आरोप लगाया है कि सरकार जानबूझकर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने गोरेकेला ड्राफ्ट को लागू नहीं किया, तो वे उच्च न्यायालय का रुख करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि कोई भी सरकारी कर्मचारी पदोन्नति को अपना अधिकार नहीं मान सकता। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि पदोन्नति नीति संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है, तो न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि सरकार ने आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन किया, तो न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
मध्य प्रदेश में पदोन्नति नियमों को लेकर चल रहा विवाद कर्मचारियों के लिए एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। सरकार की ओर से कोई ठोस कदम न उठाए जाने के कारण कर्मचारी संगठनों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। यदि सरकार ने जल्द ही इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया, तो कर्मचारियों का कोर्ट जाने का रास्ता खुला रहेगा।