असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए पर कोर्ट ने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है ।
SC ने सिटिजनशिप एक्ट की धारा 6A की वैधता को बरकरार रखा है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने इस पर गुरुवार को फैसला सुनाया। बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे। फैसले पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सहित चार जजों ने सहमति जताई है। वहीं जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।
दरअसल, सिटिजनशिप एक्ट की धारा 6A को 1985 में असम समझौते के दौरान जोड़ा गया था। इस कानून के तहत जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आए हैं वो भारतीय नागरिक के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकते हैं। हालांकि 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिकता के लायक नहीं हैं।
धारा-6ए विशेष प्रावधान के तहत शामिल की गई थी
नागरिकता अधिनियम की धारा-6ए विशेष प्रावधान के तहत शामिल की गई थी ताकि असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से संबंधित मामलों से निपटा जा सके। कानून के इस प्रावधान में कहा गया है कि जो लोग एक जनवरी 1966 को या इसके बाद और 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश सहित उल्लेखित इलाकों से असम आए हैं और यहां निवास कर रहे हैं उन्हें वर्ष 1985 में संशोधित नागरिकता कानून के तहत नागरिकता के लिए धारा-18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा। इसका नतीजा यह है कि बांग्लादेश से असम आने वालों के लिए कानून का यह प्रावधान 25 मार्च 1971 की ‘कट ऑफ तारीख’ तय करता है।
चीफ जस्टिस ने की ये टिप्पणी
चीफ जस्टिस ने कहा कि केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। क्योंकि यह सिर्फ असम के लिए था। क्योंकि असम के लिए यह व्यावहारिक था। सीजेआई ने कहा कि 25 मार्च, 1971 की कट ऑफ डेट सही थी। स्वतंत्रता के बाद पूर्वी पाकिस्तान से असम में अवैध प्रवास भारत में कुल अवैध प्रवास से अधिक था। यह इसकी मानदंड की शर्त को पूरा करता है। धारा 6A न तो कम समावेशी है और न ही अति समावेशी है।
जिनको नागरिका मिली है वह बरकरार रहेगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस वक़्त पूर्वी पाकिस्तान से असम आने वाले लोगों की तादाद आजादी के बाद भारत आने वाले लोगों से कहीं ज़्यादा है। कोर्ट के फैसले का मतलब है कि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक बांग्लादेश से आने वाले अप्रवासी भारतीय नागरिकता के लायक हैं। जिनको इसके तहत नागरिकता मिली है उनकी नागरिकता बरकरार रहेगी।