बशीर बद्र की पंक्तियाँ बयाँ करती हैं भारत की मेहनत की दास्तान—जापान को पछाड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना भारत, पर क्या यह विकास सभी तक पहुँच रहा है?
“ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं, तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर देखा नहीं” — बशीर बद्र की यह मशहूर पंक्ति आज भारत की आर्थिक सफलता की सटीक व्याख्या करती है। भारत ने एक बार फिर इतिहास रचते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा प्राप्त कर लिया है। इस मुकाम पर पहुँचने की यात्रा आसान नहीं थी, बल्कि यह निरंतर प्रयास, दूरदर्शिता, और मजबूत नीति-निर्माण का परिणाम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने वक्तव्यों में यह बात दोहराई है कि “यदि कोशिश की जाए तो कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं होता।” भारत की यह उपलब्धि इस कथन का जीवंत प्रमाण है।

जापान को पीछे छोड़ भारत ने रचा इतिहास
इस उपलब्धि की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भारत ने जापान जैसे तकनीकी और औद्योगिक महाशक्ति को पीछे छोड़ दिया है। दशकों तक जापान एशिया की अग्रणी अर्थव्यवस्था रहा, लेकिन आज वह एक उम्रदराज़ आबादी, कमजोर घरेलू मांग और उच्च सार्वजनिक ऋण जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। वहीं दूसरी ओर भारत आज युवा, ऊर्जा से भरपूर, तकनीकी रूप से सजग और वैश्विक निवेश का आकर्षण केंद्र बन चुका है।
तीन प्रमुख स्तंभ: भारत की आर्थिक सफलता की नींव
भारत की यह ऐतिहासिक छलांग मुख्य रूप से तीन प्रमुख स्तंभों पर टिकी हुई है:
स्थिर और तेज़ GDP वृद्धि दर
भारत की GDP वृद्धि दर लगातार 6% से ऊपर बनी हुई है। महामारी के बाद आर्थिक सुधार तेज़ी से हुए, जिससे वैश्विक निवेशकों का विश्वास भी बढ़ा।
सेवा क्षेत्र का विस्तार
IT, फिनटेक, हेल्थटेक और अन्य सेवा क्षेत्र में भारत की भागीदारी वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण बन चुकी है। निर्यात से लेकर रोजगार तक, यह क्षेत्र भारत की रीढ़ साबित हुआ है।
मजबूत घरेलू उपभोग मांग
भारत की बड़ी और युवा जनसंख्या एक शक्तिशाली उपभोक्ता बाजार बनाती है। मध्यम वर्ग के विस्तार और डिजिटल भुगतान प्रणालियों के प्रसार ने इस मांग को और अधिक सशक्त बनाया है।
स्टार्टअप और डिजिटल इंडिया की भूमिका
भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है। UPI, डिजिटल बैंकिंग, और सरकारी योजनाओं ने एक ऐसा डिजिटल वातावरण तैयार किया है जो न केवल पारदर्शिता को बढ़ावा देता है बल्कि उद्यमिता को भी प्रोत्साहित करता है।
“डिजिटल इंडिया” और “मेक इन इंडिया” जैसी योजनाओं ने न केवल निवेश को आकर्षित किया बल्कि देश के भीतर रोजगार और नवाचार को भी गति दी।
चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं
हालाँकि यह सफलता गर्व का विषय है, लेकिन इसके साथ-साथ कई गंभीर चुनौतियाँ भी हैं:
आधारभूत संरचना (Infrastructure) अभी भी कई हिस्सों में असमान रूप से विकसित है।
बेरोज़गारी खासकर शहरी युवाओं के बीच चिंता का विषय बनी हुई है।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को लेकर अभी भी सवाल खड़े होते हैं।
ग्रामीण-शहरी विषमता आर्थिक असमानता को और गहरा करती है।
क्या यह विकास समावेशी है?
भारत की अर्थव्यवस्था भले ही तेज़ी से आगे बढ़ रही हो, लेकिन यह पूछना आवश्यक है कि क्या इस विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँच रहा है? क्या किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी और महिलाएँ इस आर्थिक उन्नति का हिस्सा बन पा रहे हैं?
आर्थिक प्रगति के साथ-साथ सामाजिक समावेशन भी उतना ही जरूरी है। यदि समाज का एक बड़ा हिस्सा विकास से वंचित रहता है, तो यह प्रगति अधूरी कही जाएगी।
भविष्य की दिशा: तीसरी और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर
भारत का अगला लक्ष्य दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है। इसके लिए आवश्यक है:
नीति निर्माण में निरंतरता और पारदर्शिता
मानव पूंजी में निवेश — शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य
पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास
न्यायपूर्ण और समावेशी अर्थव्यवस्था का निर्माण
प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में कहा, “भारत केवल आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि विश्व को दिशा देने वाला राष्ट्र बनना चाहता है।” इसके लिए केवल आर्थिक विकास नहीं, बल्कि नैतिक और सामाजिक मजबूती भी आवश्यक है।
निष्कर्ष: एक नए भारत की ओर कदम
भारत की यह आर्थिक सफलता सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि एक नए भारत की कहानी है — जो स्वाभिमानी है, सक्षम है, और वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। अब समय है कि इस सफलता को स्थायी और समावेशी बनाया जाए, ताकि भारत न केवल चौथी, बल्कि तीसरी और फिर दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर हो।