शिकायतकर्ता का आरोप था कि दोनों आरोपियों ने एक रात मस्जिद में घुस कर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए. इस पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295A, 447, और 506 के तहत मामला दर्ज किया था.
Karnataka High Court के जज एम. नागाप्रसन्ना मुल्जिम की तरफ से दायर अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि “यह समझ से परे है कि ‘जय श्री राम’ कहने से किसी भी समुदाय की धार्मिक भावना कैसे आहत हो सकती है.” मुल्जिमों पर मस्जिद में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के खिलाफ आईपीसी की धारा 295A लगाई गई थी. इसके अलावा भी मु्ल्जिम के खिलाफ कई संबंधित धाराएं लगाई गईं.
इन धाराओं के तहत केस दर्ज
अदालत ने कहा, ‘धारा 295 ए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से संबंधित है जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है। यह समझ में आता है कि अगर कोई ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाता है तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचेगी। जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के साथ रह रहे हैं तो इस घटना का किसी भी तरह से कोई मतलब नहीं निकाला जा सकता है।’
क्या बोली राज्य सरकार?
कर्नाटक सरकार ने याचिकाकर्ताओं की याचिका का विरोध किया और उनकी हिरासत की मांग करते हुए कहा कि मामले में आगे की जांच की जरूरत है। हालांकि अदालत ने माना कि अपराध का सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।
अदालत ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि कोई भी कार्य आईपीसी की धारा 295 ए के तहत तब तक अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि उससे शांति स्थापित करने या सार्वजनिक व्यवस्था को नष्ट करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ऐसा नहीं होता है तो उन्हें आईपीसी की धारा 295 ए के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।’
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने दक्षिण कन्नड़ जिले के निवासी कीर्थन कुमार और सचिन कुमार के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।