खजुराहो, जो अपनी भव्य और अद्वितीय मंदिर शिल्पकला के लिए पूरे विश्व में मशहूर है,क्या आपने कभी सोचा है कि इन मंदिरों की नींव रखने वाले राजा यशोवर्मन का नाम आज इतिहास के किसी कोने में गुम क्यों है? शायद इसलिए कि हमारे “स्मारक-प्रेमी” नेताओं और “दर्शनीय-धरोहर” प्रेमी अधिकारियों को ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता!
राजा यशोवर्मन, जिनके शासनकाल में खजुराहो ने अपना सुनहरा युग देखा, उन्होंने चंदेल कालीन लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। आज भी यह मंदिर पर्यटकों की चहेती जगह है,लेकिन खजुराहो में उनके नाम पर बना “राजा यशोवर्मन बस स्टैंड आज कि स्थिति में खंडहर में तब्दील है ? बस स्टैंड का हाल देखकर आप सोचने लगेंगे कि इतिहास और आधुनिकता का यह कैसा अनोखा संगम है।
बस स्टैंड की गंदगी, टूटे हुए बेंच, और उधड़ी हुई सड़कों को देखकर लगता है कि यह बस स्टैंड राजा यशोवर्मन के याद में नहीं, बल्कि आने वाले नेताओं के कर्तव्यहीनता की निशानी के तौर पर बनवाया गया हो। यात्री सुविधाओं का तो ऐसा टोटा है कि अगर राजा यशोवर्मन खुद भी बस पकड़ने आते, तो शायद पैदल ही खजुराहो घूम लेते!
अब सवाल उठता है कि प्रशासन और हमारे “विकासवादी” नेताओं की आंखों पर आखिर किस धरोहर-विरोधी चश्मे का पर्दा पड़ा है ? खजुराहो के मंदिरों के संरक्षण पर बड़े-बड़े दावे करने वाले लोग राजा यशोवर्मन के नाम पर बने इस बस स्टैंड को बचाने में क्यों असफल हैं ?कभी बड़े-बड़े अक्षरों में बस स्टैंड के बाहर लिखा रहता था राजा यशोवर्मन बस स्टैंड वह भी समय के साथ मिट गया वैसे, यह मत सोचिए कि नेता कुछ नहीं कर रहे। उन्होंने बस स्टैंड के नाम के नीचे “महान राजा यशोवर्मन की स्मृति में” एक बोर्ड लगवा दिया है। विकास का इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए!
और हां, चुनाव के समय उसी गंदे बस स्टैंड के पास खड़े होकर वे “इतिहास को सहेजने” और “पर्यटन को बढ़ावा देने” की लंबी-चौड़ी बातें भी करते हैं।अगर राजा यशोवर्मन आज जिंदा होते, तो शायद बस यही कहते, “ऐसी श्रद्धांजलि से तो कोई श्रद्धांजलि न दो।”छतरपुर प्रशासन से आग्रह है कि राजा यशोवर्मन को सच्चे अर्थों में सम्मान दें।
कम से कम उनके नाम पर बने बस स्टैंड को साफ-सुथरा और व्यवस्थित बना दें, ताकि आने वाले पर्यटक इसे देखकर यही न सोचें कि ये “राजा यशोवर्मन” कौन थे, और उनकी इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है।
छतरपुर से समीर अवस्थी की रिपोर्ट