ग्वालियर, मध्यप्रदेश – राजनीति में दिखावे के कई किस्से सुनने को मिलते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने जो किया, उसने सभी का ध्यान खींच लिया। मंत्री ने नगर निगम की लचर सफाई व्यवस्था के विरोध में अपने सरकारी बंगले को छोड़कर पार्क में टेंट लगाकर रहना शुरू कर दिया है। उन्होंने बीती रात टेंट में एक पंखा लगाकर वहीं पर सोने का फैसला लिया। यह कदम उन्होंने तब उठाया जब लगातार शिकायतों के बावजूद नगर निगम ने सफाई व्यवस्था में कोई सुधार नहीं किया।
ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ग्वालियर विधानसभा सीट से विधायक हैं और साफ-सुथरी छवि के लिए जाने जाते हैं। वह पहले भी कई बार जमीनी मुद्दों को लेकर खुद सड़कों पर उतर चुके हैं। इस बार उन्होंने अपनी ही सरकार की एजेंसी – नगर निगम – के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए यह प्रतीकात्मक विरोध शुरू किया है।
क्या कहा मंत्री ने?
मीडिया से बातचीत में प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा,
“जब जनता को गंदगी से दो-चार होना पड़ रहा है और अफसर सिर्फ फाइलों में जवाब दे रहे हैं, तो मुझे बंगले में रहने का कोई हक नहीं है। मैं तब तक टेंट में ही रहूंगा जब तक सफाई व्यवस्था में ठोस सुधार नहीं होता।”
उन्होंने यह भी बताया कि क्षेत्र में जगह-जगह गंदगी फैली हुई है, नालियों की सफाई समय पर नहीं हो रही और लोगों की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। उनके मुताबिक, यह जनता के सम्मान और स्वास्थ्य का मामला है।
प्रशासन में मची हलचल
ऊर्जा मंत्री के इस कदम के बाद ग्वालियर नगर निगम में हड़कंप मच गया है। निगम आयुक्त और अन्य अधिकारी आनन-फानन में सक्रिय हो गए हैं। पार्कों और कॉलोनियों की सफाई के लिए टीमें तैनात की जा रही हैं। हालांकि, मंत्री का कहना है कि यह कार्रवाई सिर्फ दिखावे की न हो, बल्कि स्थायी समाधान हो।
जनता की मिली-जुली प्रतिक्रिया
मंत्री जी के इस कदम पर जनता की प्रतिक्रिया भी दिलचस्प रही। कई लोगों ने इसे एक ईमानदार और जमीनी नेता की पहल बताया, जबकि कुछ इसे राजनीतिक स्टंट करार दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर मंत्री के टेंट में पंखे के नीचे सोते हुए फोटो और वीडियो जमकर वायरल हो रहे हैं।
क्या बदलेगा हालात?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या मंत्री के इस विरोध से ग्वालियर की सफाई व्यवस्था में वाकई कोई स्थायी बदलाव आएगा या यह सिर्फ कुछ दिनों की खबर बनकर रह जाएगा? लेकिन इतना तय है कि प्रद्युम्न सिंह तोमर ने एक बार फिर यह संदेश जरूर दिया है कि अगर जनहित का मामला हो, तो वह कुर्सी से ज्यादा ज़मीन को प्राथमिकता देते हैं।