National news. जातिगत जनगणना को लेकर देश की राजनीति में फिर हलचल है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर इस जनगणना को और ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए तीन महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं. खड़गे ने चिट्ठी में सरकार की पिछले पत्रों पर चुप्पी पर भी नाराज़गी जताई
16 अप्रैल को लिखे पत्र का नहीं मिला जवाब
खड़गे ने लिखा— “16 अप्रैल 2023 को मैंने जो पत्र लिखा था, उसका कोई जवाब नहीं मिला। लेकिन अब, आप खुद स्वीकार कर रहे हैं कि यह मांग सामाजिक हित में है. खड़गे ने प्रधानमंत्री को सलाह दी कि इस विषय पर सभी राजनीतिक दलों से संवाद किया जाए, ताकि इसे व्यापक सहमति के साथ अंजाम दिया जा सके.
खड़गे ने दिए 3 अहम सुझाव
खड़गे ने कहा कि जाति सर्वे के सवाल बेहद अहम हैं, इसलिए तेलंगाना मॉडल को अपनाकर विस्तृत और वैज्ञानिक ढंग से प्रश्न तय किए जाएं. उन्होंने SC, ST और OBC के लिए 50% की आरक्षण सीमा को हटाने और राज्यों के आरक्षण कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की, ताकि उन पर न्यायिक अड़चन न आए. खड़गे ने 2006 में लाए गए अनुच्छेद 15(5) को लागू करने की बात कही, ताकि प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण सुनिश्चित हो सके.

30 अप्रैल को हुई थी जाति जनगणना की घोषणा
30 अप्रैल को केंद्र सरकार ने जाति जनगणना की औपचारिक घोषणा कर दी थी। यह आज़ादी के बाद देश की पहली जाति आधारित जनगणना होगी. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मुख्य जनगणना प्रक्रिया के साथ ही जोड़ा जाएगा. सितंबर 2025 से जनगणना शुरू हो सकती है. एक साल तक प्रक्रिया चल सकती है. 2026 के अंत तक या 2027 की शुरुआत में आंकड़े मिल सकते हैं.
जाति जनगणना बिहार में बनेगी बड़ा मुद्दा
बिहार में इस साल सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में जाति जनगणना एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकती है। बिहार, जातिगत जनगणना कराने वाला पहला राज्य था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को धन्यवाद कहा है, वहीं लालू यादव ने इस फैसले को लेकर तंज कसा है। राजद और जदयू— दोनों ही इस फैसले का क्रेडिट लेने में जुटे हैं।

जातिगत जनगणना को लेकर देशभर में बहस
जातिगत जनगणना को लेकर अब देश भर में बहस तेज़ है। आंकड़े किस तरह सामने आते हैं और क्या वे सामाजिक न्याय के नए दरवाज़े खोल पाएंगे— ये आने वाले वक्त में साफ़ होगा. जातिगत आंकड़ों की इस ऐतिहासिक कवायद से सामाजिक नीति और राजनीति— दोनों ही नई दिशा ले सकते हैं। देखना होगा कि केंद्र सरकार खड़गे के सुझावों पर कितना अमल करती है.