लोकेश भारतीय
सहायक प्राध्यापक, बी.एस.एस.एस. कॉलेज, भोपाल (मध्य प्रदेश)
मई का महीना और गर्मी का सितम
इन दिनों देश के अधिकांश हिस्से तप रहे हैं। तापमान 45 डिग्री के पार पहुँच रहा है और हर व्यक्ति दिन भर यही सोच रहा है कि इस गर्मी से कैसे राहत पाई जाए। लेकिन यह सवाल कहीं न कहीं अधूरा है। असली सवाल यह है कि ये गर्मी इतनी असहनीय क्यों हो गई है? और क्या यह वही गर्मी है जिसे हम बचपन में झेलते थे—या अब यह कुछ और बन चुकी है?
अगर आप गौर करें तो महसूस करेंगे कि इस बार की गर्मी में सिर्फ गर्माहट नहीं, बल्कि एक असहज चिपचिपाहट, अनचाही थकान और बेचैनी भी शामिल है। क्या यह सिर्फ मौसम का चक्र है या कोई और बात है? सच तो यह है कि यह गर्मी हमें एक चेतावनी दे रही है—यह गर्मी केवल प्रकृति की देन नहीं, हमारे अपने कर्मों का परिणाम भी है।

सहायक प्राध्यापक, बी.एस.एस.एस. कॉलेज, भोपाल (मध्य प्रदेश)
तापमान का अस्वाभाविक बढ़ना: एक संकेत
हर साल गर्मी आती है, लेकिन जिस तरह से तापमान तेजी से बढ़ रहा है, वह सामान्य नहीं है। यह केवल एक मौसमी बदलाव नहीं, बल्कि एक खतरनाक पर्यावरणीय असंतुलन का परिणाम है। हम में से अधिकतर लोग इस परिवर्तन को महसूस तो कर रहे हैं लेकिन समाधान की दिशा में गंभीर कदम नहीं उठा रहे।
हम कूलर और एसी की हवा में बैठकर खुद को सुरक्षित मान लेते हैं, लेकिन क्या हम यह सोचते हैं कि यह आराम अस्थायी है? और यह आराम पर्यावरण को और अधिक क्षति पहुँचा रहा है?
विकास की कीमत: पेड़ों की बलि, गर्मी की चपेट
आज हम ऊँची-ऊँची इमारतों, चौड़ी सड़कों, चमकते मॉल और विकसित शहरों को देखकर खुश होते हैं। लेकिन इन सबके पीछे जो कीमत हमने चुकाई है, उस पर शायद ही कभी सोचते हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, हरियाली का नाश, और प्राकृतिक जल स्रोतों की उपेक्षा ने हमें इस स्थिति में ला खड़ा किया है। क्या यह विकास है, जिसमें हम पेड़ काटते हैं, ज़मीन को सीमेंट से ढँकते हैं, और फिर उसी गर्मी से बचने के लिए एसी का सहारा लेते हैं?
क्या यह विकास टिकाऊ है?
समय के साथ बदलाव ज़रूरी होते हैं, और आधुनिकता भी आवश्यक है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विकास संतुलित है? क्या हम प्रकृति और प्रगति के बीच समन्वय बनाने को तैयार हैं? सरकारें, कंपनियाँ और आम जनता—all are part of the system. लेकिन हम सब में से कितने लोग इस असंतुलन के प्रति सचेत हैं?
जलवायु परिवर्तन: अब चर्चा नहीं, ज़रूरत है कार्रवाई की
पिछले चार दशकों से जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग, ओज़ोन परत, कार्बन उत्सर्जन जैसे मुद्दों पर लगातार वैश्विक सम्मेलन होते रहे हैं—1992 का पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit), 1997 का क्योटो प्रोटोकॉल, और 2015 का पेरिस समझौता इसके उदाहरण हैं। इन सम्मेलनों में बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं लेकिन क्या हम, आम नागरिक, इस पर अमल कर रहे हैं?
अब समय है कि हम सिर्फ सुनें नहीं, करें भी।
तो आखिर हम कर क्या सकते हैं?
यह एक बड़ा सवाल है, और इसका जवाब छोटा लेकिन शक्तिशाली है—हम बहुत कुछ कर सकते हैं। नीचे दिए गए कुछ कदम हर आम नागरिक आसानी से उठा सकता है:
रेन वाटर हार्वेस्टिंग:
वर्षा जल को एकत्र कर उसका सदुपयोग करना एक सरल लेकिन कारगर उपाय है। इससे भूजल स्तर सुधरता है और जल संकट कम होता है।
देशी पेड़ों का रोपण:
नीम, पीपल, बबूल जैसे देशी पेड़ न सिर्फ छाया देते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी ठंडक प्रदान करते हैं।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग:
सप्ताह में दो बार सार्वजनिक परिवहन का उपयोग निजी वाहनों की अपेक्षा कम प्रदूषण फैलाता है।
EV या CNG वाहनों की ओर रुख:
पेट्रोल-डीज़ल की तुलना में इलेक्ट्रिक या CNG वाहन पर्यावरण के लिए कहीं अधिक अनुकूल होते हैं।
ऊर्जा की बचत:
बिना ज़रूरत के लाइट, पंखा, एसी का इस्तेमाल न करें। सोलर पावर जैसी वैकल्पिक ऊर्जा का प्रयोग करें।
शुरुआत कौन करेगा?
यही सबसे बड़ा सवाल है। जवाब भी उतना ही सीधा है—आप।
हाँ, शुरुआत आपको ही करनी होगी। अगर हम सब अपनी तरफ से छोटा-छोटा योगदान दें, तो एक बड़ा परिवर्तन संभव है। हम यह सब अपने लिए नहीं, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए कर रहे हैं।
जब आने वाली पीढ़ी सवाल करेगी…
कल्पना कीजिए, कुछ वर्षों बाद आपका बेटा या बेटी आपसे पूछे—”पापा, जब धरती जल रही थी तो आपने क्या किया?”
क्या हम उनके इस सवाल का जवाब दे पाएँगे?
अगर आज हमने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी नहीं निभाई, तो कल आँखें मिलाना मुश्किल होगा।
लेकिन अगर आज ही हमने संकल्प ले लिया कि “मैं शुरुआत करूंगा,”
तो शायद भविष्य में एक बेहतर और सुरक्षित दुनिया हमारे बच्चों को सौंप सकें।
निष्कर्ष: संकल्प से समाधान तक
गर्मी सिर्फ एक मौसम नहीं, अब यह एक चेतावनी है। यह समय है समझने का, जागने का और कार्रवाई करने का।
हम सबको मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि—
मैं सिर्फ शिकायत नहीं करूंगा, बदलाव की शुरुआत करूंगा।
मैं पर्यावरण के लिए एक जिम्मेदार नागरिक बनूंगा।
क्योंकि आने वाला कल तभी ठंडा और सुरक्षित होगा—
अगर हम आज गर्मी की जड़ को पहचान कर उसका समाधान शुरू करें।