UP में 69 हजार शिक्षक भर्ती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस ने पिछले महीने हाई कोर्ट की तरफ से जारी आदेश को निलंबित करते हुए 23 सितंबर को अगली सुनवाई की तारीख तय की है।
उत्तर प्रदेश का 69 हजार शिक्षक भर्ती मामला एक बड़ा विवाद है, जो राज्य में 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती से जुड़ा है। इस मामले की शुरुआत 2018 में हुई थी, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी को दूर करने के लिए इस भर्ती का आयोजन किया। हालांकि, भर्ती प्रक्रिया के दौरान कई विवाद और कानूनी मुद्दे सामने आए।

उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षकों की भर्ती मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की तरफ से दिए गए आदेश पर रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस ने पिछले महीने हाई कोर्ट की तरफ से जारी आदेश को निलंबित करते हुए 23 सितंबर को अगली सुनवाई की तारीख तय की है। गौरतलब है कि सहायक शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट रद्द किए जाने से हजारों टीचर्स की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा था।

सीजेआई ने सभी पक्षकारों से कहा लिखित नोट दाखिल करने की बात कही है। उसके बाद इस पर फाइनल सुनवाई की जाएगी। दूसरी ओर ओबीसी अभ्यर्थी हैं जो सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि हाई कोर्ट के फैसले को जल्द से जल्द लागू कराया जाए. उनका आरोप है कि इस शिक्षक भर्ती में ओबीसी आरक्षण की अनदेखी की गई है
हाई कोर्ट का फैसला ?
पिछले ही महीने यूपी में 69 हजार शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए सहायक शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट रद्द कर दिया था। इसके साथ ही सरकार को आरक्षण नियमावली 1994 की धारा 3(6) और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का पालन करने का आदेश भी दिया था। सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा का परिणाम नए सिरे से जारी करने का आदेश दिया गया था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अगस्त के अपने फैसले में जून 2020 और जनवरी 2022 की सिलेक्शन लिस्ट को रद्द करते हुए UP सरकार को आदेश दिया था कि वो 2019 में हुई सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा के आधार पर 69 हजार शिक्षकों के लिए नई सिलेक्शन लिस्ट तीन महीने में जारी करे। हाई कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर कोई आरक्षित वर्ग का कैंडिडेट जनरल कैटेगरी के बराबर मेरिट हासिल कर लेता है तो उसका सिलेक्शन जनरल कैटगरी में ही माना चाहिए। इस आदेश के चलते यूपी में बड़ी संख्या में नौकरी कर रहे शिक्षकों पर नौकरी खोने का खतरा मंडराने लगा।