‘एक देश एक चुनाव’ को केंद्र सरकार ने बुधवार को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इस पर अपनी मुहर लगाई है।अब इस प्रस्ताव को आगामी शीतकालीन संसदीय सत्र में रखा जाएगा, जिस पर बहस होगी।
वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी ने प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेजा था ।. सिफारिशों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराने के साथ कई और सिफारिशें भी की गई थीं जिन्हें मान लिया गया है. चर्चा है कि मोदी सरकार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए संसद में विधेयक लाने की तैयारी कर रही है.
‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर कई चुनौतियां थी, इन चुनौतियों से कैसे निपटा जाए, दुनिया के किन देशों में वन नेशन वन इलेक्शन का मॉडल है, वहां चुनाव कैसे होते हैं, ऐसे तमाम सवालों के जवाबों के लिए 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
रामनाथ कोविंद की समिति के प्रस्ताव पर भले ही कैबिनेट ने अपनी मुहर लगा दी हो, लेकिन इसकी राह में काफी रोड़े दिखाई दे रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रस्ताव को अमल में लाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, क्योंकि संविधान में चुनाव को लेकर अलग प्रावधान है। ऐसे में इसे पारित करने के लिए इसका संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के साथ आधे से ज्यादा राज्यों की विधानसभा में पास होना जरूरी है।
दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां वन नेशन-वन इलेक्शन वाला मॉडल लागू है. इसमें अमेरिका अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा जैसे देश शामिल हैं. अमेरिका में तय तारीख को राष्ट्रपति और सीनेट के लिए चुनाव होते हैं. फ्रांस में संसद का निचला सदन यानी नेशनल असेंबली है. यहां नेशनल असेंबली के साथ संघीय सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति के साथ ही राज्यों के प्रमुख और प्रतिनिधियों का चुनाव कराया जाता है. स्वीडन में स्थानीय सरकार और संसद के चुनाव हर चार साल में एक साथ होते हैं.