उज्जैन। धर्म, संस्कृति और भक्ति का संगम एक बार फिर उज्जैन में देखने को मिला, जहां 19वीं क्षिप्रा तीर्थ परिक्रमा यात्रा का भव्य शुभारंभ हुआ। पवित्र क्षिप्रा नदी के तट से शुरू हुई इस आध्यात्मिक यात्रा ने एक बार फिर उज्जैन को देश की धार्मिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।
गंगा दशमी से एक दिन पूर्व आरंभ होने वाली इस यात्रा की शुरुआत इस वर्ष और भी भव्य रूप में की गई। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा 18 वर्ष पूर्व शुरू की गई इस परंपरा को अब एक नई ऊंचाई मिल रही है। इस वर्ष यात्रा का उद्घाटन मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि एवं प्रभारी मंत्री गौतम टेटवाल ने दत्त अखाड़ा घाट पर विधिवत क्षिप्रा पूजन और ध्वजा आरोहण के साथ किया।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में साधु-संत, किन्नर अखाड़ा, पंडे-पुजारी, जनप्रतिनिधि, और प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे। शहर में श्रद्धा और भक्ति का वातावरण देखने लायक था।
धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना का संगम
यह तीर्थ परिक्रमा अब केवल धार्मिक यात्रा नहीं रही, बल्कि यह उज्जैन की संस्कृति, सामाजिक चेतना और अध्यात्म का जीवंत प्रतीक बन चुकी है। यात्रा के पहले दिन रामघाट और दत्त अखाड़ा घाट से शुरुआत हुई, जो नृसिंह घाट, आनंदेश्वर मंदिर, गऊघाट, जंतर-मंतर, त्रिवेणी शनि मंदिर, गोठड़ा, चिंतामण, भूखी माता मंदिर होते हुए रात में फिर दत्त अखाड़ा घाट पर विश्राम के साथ समाप्त हुई।
5 जून को होगा यात्रा का समापन
यात्रा का दूसरा दिन 5 जून को रणजीत हनुमान, कालभैरव, मंगलनाथ, सांदीपनि आश्रम, गढ़कालिका, और भर्तृहरि गुफा होते हुए पुनः रामघाट पर समाप्त होगी। समापन अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव स्वयं क्षिप्रा को चुनरी अर्पित करेंगे, जो श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक होगा।
भव्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियां बनीं आकर्षण का केंद्र
परिक्रमा यात्रा के साथ उज्जैन की सांस्कृतिक विरासत भी पूरी भव्यता से सामने आई। 4 जून को दत्त अखाड़ा घाट पर पवन तिवारी और उनके दल ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं, जबकि 5 जून को रामघाट पर 100 कलाकारों द्वारा मिलिट्री बैंड, और मुंबई की प्रसिद्ध कलाकार स्वस्ति मेहुल की प्रस्तुति श्रद्धालुओं को भावविभोर कर देगी।
16 जून तक चलेगा सांस्कृतिक उत्सव
यह आयोजन केवल दो दिनों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि 16 जून तक प्रतिदिन रामघाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। इनमें ढोली बुआ, श्री हरिकथा, नारद कीर्तन जैसे कार्यक्रम शामिल हैं, जो श्रद्धालुओं को अध्यात्म और आनंद से भर देंगे।
उज्जैन को पुनः मिली अध्यात्म की पहचान
भगवा ध्वजों की कतार, गूंजते भजन और श्रद्धा की लहरों के बीच उज्जैन ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि यह नगर केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना का केंद्र है। मुख्यमंत्री की पहल ने न केवल प्राचीन तीर्थ परंपराओं को जीवंत किया है, बल्कि उज्जैन की सांस्कृतिक पहचान को भी राष्ट्रीय मंच पर सशक्त किया है।